नाम: पंडित किशोरी अमोनकर
जन्म: 10 अप्रैल 1952
जन्म स्थान: मुंबई, महाराष्ट्र, भारत
व्यवसाय: शास्त्रीय गायिका
गुरु: उस्ताद अब्दुल करीम खान, पं. वसंत रावत, पं. कृष्णराव शंकर, पं. रामरतन वर्मा
वर्तमान स्थिति: सक्रिय (जैसा कि 2021 तक)
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
पंडित किशोरी अमोनकर का जन्म 10 अप्रैल 1952 को मुंबई में हुआ था। उनका परिवार संगीत से गहरे जुड़ा हुआ था और उनके माता-पिता दोनों ही संगीत के प्रति विशेष रुचि रखते थे। किशोरी अमोनकर ने अपनी प्रारंभिक संगीत शिक्षा अपने पिता, श्री गणपत अमोनकर से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने शास्त्रीय संगीत की अधिक गहराई में शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध गुरु से मार्गदर्शन लिया।
पंडित किशोरी अमोनकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे कठिन विधाओं में से एक, हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन में दक्षता प्राप्त की। उनके गायन में विशेष रूप से गहरे रागों, तानों और आलाप की अहम भूमिका है। उन्होंने लखनऊ घराने की गायन शैली को सीखा और इसे अपनी विशेष शैली में ढाला।
संगीत यात्रा और गुरु:
पंडित किशोरी अमोनकर ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत बहुत छोटी उम्र से ही कर दी थी। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए कई प्रसिद्ध गायकों और गुरुओं से प्रशिक्षण लिया। उनका सबसे बड़ा मार्गदर्शक उस्ताद अब्दुल करीम खान थे, जिनसे उन्होंने गायन की बारीकियाँ सीखी। इसके अलावा, पं. वसंत रावत और पं. कृष्णराव शंकर जैसे महान गुरुओं से भी उन्होंने शिक्षा प्राप्त की।
उनकी गायकी में ग्वालियर घराने का प्रभाव देखा जाता है, और उन्होंने शास्त्रीय गायन की विधाओं जैसे आलाप, तान, और बंदिशों को अत्यधिक परिष्कृत किया। पं. किशोरी अमोनकर का गायन न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से उत्कृष्ट था, बल्कि उनकी गायकी में एक अद्भुत भावनात्मक गहराई भी थी, जो श्रोताओं को उनके संगीत में डुबो देती थी।
गायन शैली और संगीत में योगदान:
पंडित किशोरी अमोनकर का गायन शैली अत्यधिक शास्त्रीय और शुद्ध था। उनकी आवाज़ में एक अद्वितीय मिठास और गहराई थी, जो शास्त्रीय रागों के प्रति उनकी गहरी समझ को व्यक्त करती थी। वे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उन गायकों में से एक थीं, जिन्होंने गहरे रागों को अत्यधिक भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया।
उनकी गायकी में रागों की बारीकी, भावनाओं का चित्रण और शास्त्रीय रचनाओं का सही अनुसरण था। उनका गायन सीधे दिल से जुड़ता था, और वे शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं को एक अलग ही संसार में ले जाते थे। पं. किशोरी अमोनकर का गायन सिर्फ शास्त्रीय संगीत का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक प्रकार की साधना थी, जिसमें संगीत के साथ आत्मा का मिलन होता था।
उनकी गायकी के कई विशिष्ट पहलू थे, जैसे कि आलाप में गहरी सूक्ष्मता और तान में नियंत्रण। वे रागों के उभार और उसके भीतर छिपे भावनाओं को पूरी सजीवता के साथ व्यक्त करती थीं। खासकर, उनके द्वारा गाए गए रागों में, जैसे राग दरबारी, राग भैरव, राग मालकौंस, राग यमन और राग हेमंत, वे पूरी तरह से शास्त्रीयता में बंधी होती थीं, साथ ही साथ उनकी गायकी में रचनात्मकता और स्वतंत्रता भी देखने को मिलती थी।
प्रमुख पुरस्कार और सम्मान:
पंडित किशोरी अमोनकर को भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1991) – भारतीय संगीत के लिए उनके योगदान के लिए।
- पद्मश्री (2002) – भारत सरकार द्वारा संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया।
- पद्मभूषण (2010) – भारतीय संगीत के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए।
- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – संगीत के लिए उनका महत्वपूर्ण योगदान।
- तानसेन पुरस्कार – भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए।
इन पुरस्कारों और सम्मानों ने उनके संगीत और गायन के योगदान को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया और उनके कौशल और साधना की प्रशंसा की।
समाज में योगदान:
पंडित किशोरी अमोनकर न केवल एक महान गायिका थीं, बल्कि वे एक प्रेरणास्त्रोत भी थीं। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत को समाज में अधिक लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया। उनके योगदान से न केवल शास्त्रीय संगीत की सराहना बढ़ी, बल्कि उन्होंने संगीत के शुद्ध रूप को बनाए रखने के लिए भी काम किया।
इसके अलावा, वे युवा गायकों के लिए भी एक मार्गदर्शक थीं। पंडित किशोरी अमोनकर ने अपने शिष्यगण को शास्त्रीय गायन की कठिनाइयों और बारीकियों से अवगत कराया और उन्हें संगीत के प्रति अनुशासन और साधना का महत्व समझाया।
व्यक्तिगत जीवन:
पंडित किशोरी अमोनकर का व्यक्तिगत जीवन बहुत ही साधारण और संयमित था। उन्होंने अपना अधिकांश समय संगीत साधना में ही बिताया और संगीत को ही अपना जीवन माना। उनका मानना था कि संगीत एक साधना है, और इसे केवल तकनीकी रूप से नहीं, बल्कि गहरे भावनात्मक जुड़ाव के साथ किया जाना चाहिए।
पंडित किशोरी अमोनकर ने संगीत के क्षेत्र में कई छात्रों को प्रशिक्षित किया और उन्हें संगीत के शास्त्र, रागों की संरचना और गायन की विशेष विधियों में प्रशिक्षित किया।
मृत्यु और विरासत:
पंडित किशोरी अमोनकर का निधन 2018 में हुआ, लेकिन उनकी गायकी और संगीत की विरासत आज भी जीवित है। उनके योगदान के कारण भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नया आयाम मिला, और वे हमेशा संगीत प्रेमियों और शास्त्रीय गायकों के बीच प्रेरणा का स्रोत रहेंगी। उनकी गायकी के भीतर जो आत्मा और भावनाएं थीं, वे न केवल शास्त्रीय संगीत को बल्कि समग्र भारतीय कला को भी समृद्ध करती थीं।
निष्कर्ष:
पंडित किशोरी अमोनकर भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे महान गायकों में से एक मानी जाती हैं। उनका गायन तकनीकी रूप से परिष्कृत और भावनात्मक रूप से गहरा था। उन्होंने अपने संगीत के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत को नया जीवन दिया और इसे एक नई दिशा में प्रगति की। उनकी गायकी की सुंदरता और शास्त्रीयता की गहराई हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित रहेगी।