ग्वालियर घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित घराना माना जाता है। यह घराना खयाल गायकी की जड़ है और अन्य सभी घरानों के लिए आधार का काम करता है। इसकी स्थापना नाथ्थन पीर बख्श और हदरसेन द्वारा की गई थी, लेकिन इसे विशेष ख्याति तानसेन के वंशजों और ग्वालियर राजदरबार के संरक्षण से मिली।
1. इतिहास और स्थापना
ग्वालियर घराने की स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई और यह घराना तानसेन की परंपरा से निकला हुआ माना जाता है। इस घराने को विकसित करने में नाथ्थन पीर बख्श और हदरसेन का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
ग्वालियर रियासत के शासकों ने इस घराने को राजकीय संरक्षण दिया, जिससे यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण संगीत घरानों में से एक बना। उस्ताद हदरसेन और उस्ताद नाथ्थन पीर बख्श ने इसे खयाल गायकी के रूप में प्रसिद्ध किया।
2. ग्वालियर घराने की विशेषताएँ
ग्वालियर घराने की गायकी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं पर आधारित है:
(1) खयाल गायकी का जनक
- ग्वालियर घराने को खयाल गायकी की जन्मस्थली माना जाता है।
- इस घराने ने खयाल शैली को सबसे पहले व्यवस्थित किया और इसे मुख्यधारा में लाया।
(2) स्पष्ट उच्चारण और स्वर-विन्यास
- इस घराने की गायकी में स्वरों का स्पष्ट उच्चारण और सीधा प्रस्तुतीकरण होता है।
- गायक बिना अधिक अलंकरण के सीधे स्वर प्रस्तुत करते हैं।
(3) सधा हुआ और संतुलित गायन
- ग्वालियर घराने की गायकी में न अधिक सजावट, न अधिक तानबाजी होती है, बल्कि संतुलित गायन शैली अपनाई जाती है।
- इसमें आलाप, बोल-आलाप, तान और लय का अच्छा तालमेल होता है।
(4) सरल और प्रभावशाली तानों का प्रयोग
- इस घराने की तानें बहुत साफ़, सरल और तेज गति की होती हैं।
- तानों में शुद्धता और स्पष्टता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
(5) विलंबित और द्रुत खयाल दोनों का प्रयोग
- ग्वालियर घराने में विलंबित खयाल और द्रुत खयाल दोनों को समान रूप से गाया जाता है।
- अन्य घरानों की तुलना में यहाँ द्रुत खयाल अधिक प्रचलित है।
(6) ताल और लय पर विशेष ध्यान
- इस घराने की गायकी में ताल और लयकारी पर विशेष जोर दिया जाता है।
- खासतौर पर झपताल, तीनताल और एकताल में गायकी अधिक प्रचलित है।
3. प्रमुख कलाकार और गुरु-शिष्य परंपरा
ग्वालियर घराने से कई महान संगीतज्ञ जुड़े हुए हैं, जिन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाया:
(1) नाथ्थन पीर बख्श और हदरसेन
- ये ग्वालियर घराने के शुरुआती संस्थापक थे।
- इन्होंने खयाल गायकी को स्थापित किया।
(2) उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ
- वे इस घराने के प्रमुख सारंगी और गायन कलाकार थे।
- इनके पुत्र उस्ताद अमजद अली खाँ ने भी सरोद वादन में इस परंपरा को आगे बढ़ाया।
(3) पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर
- इन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को आम जनता तक पहुँचाया।
- भारतीय संगीत शिक्षा प्रणाली की नींव रखी और संगीत पाठशालाएँ खोलीं।
(4) पंडित विष्णु नारायण भातखंडे
- इन्होंने हिंदुस्तानी संगीत के सिद्धांतों को व्यवस्थित रूप से संकलित किया।
- भारतीय रागों की थाट प्रणाली विकसित की।
(5) पंडित कृष्णराव शंकर पंडित
- वे इस घराने के प्रमुख गायक थे और इन्होंने कई विद्यार्थियों को प्रशिक्षित किया।
4. ग्वालियर घराने का योगदान
ग्वालियर घराने ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए:
- खयाल गायकी को जन्म दिया और इसे मुख्य शैली के रूप में विकसित किया।
- स्वरों की स्पष्टता, संतुलित तानें और लयकारी पर विशेष जोर दिया।
- भारतीय संगीत शिक्षा प्रणाली को स्थापित करने में मदद की (पंडित पलुस्कर के प्रयासों से)।
- अन्य घरानों पर गहरा प्रभाव डाला, जैसे आगरा, जयपुर और किराना घराना।
5. निष्कर्ष
ग्वालियर घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सबसे पुराना और प्रभावशाली घराना है। इसकी गायकी स्पष्ट, संतुलित और सुव्यवस्थित होती है। खयाल गायकी की जड़ें इसी घराने में हैं और अन्य सभी घरानों ने इसकी शैली से प्रेरणा ली है। आज भी ग्वालियर घराने की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले कई कलाकार कार्यरत हैं।