सेनिया घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक अत्यंत प्रतिष्ठित और प्राचीन घराना है। इसका नाम महान संगीतज्ञ तानसेन से जुड़ा हुआ है, जो मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे। इस घराने की परंपरा को तानसेन के वंशजों और उनके शिष्यों ने आगे बढ़ाया। सेनिया घराना ध्रुपद, खयाल और वाद्य संगीत की समृद्ध परंपरा के लिए प्रसिद्ध है।
1. सेनिया घराने का इतिहास और उत्पत्ति
- सेनिया घराने की जड़ें तानसेन से जुड़ी हुई हैं, जो स्वामी हरिदास के शिष्य थे।
- तानसेन के परिवार और शिष्यों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया, जिससे यह घराना अस्तित्व में आया।
- सेनिया घराना मुख्य रूप से वाद्य संगीत और ध्रुपद गायकी से संबंधित रहा है।
- तानसेन के कई शिष्य और वंशज अलग-अलग क्षेत्रों में बसे, जिससे सेनिया घराने की कई शाखाएँ विकसित हुईं।
2. सेनिया घराने की प्रमुख शाखाएँ
(1) सेनिया ध्रुपद घराना
- इस घराने में मुख्य रूप से ध्रुपद और धमार गायकी को प्रधानता दी गई।
- गायक राग की शुद्धता, गंभीरता और ध्रुपद शैली की ताकत पर विशेष ध्यान देते थे।
- प्रमुख कलाकार: बहादुर खाँ, ज़ियाउद्दीन खाँ, उस्ताद अलीमुद्दीन खाँ।
(2) सेनिया सितार घराना
- सेनिया परंपरा में सितार और सुरबहार वाद्ययंत्रों का विकास किया गया।
- इस शाखा के वादक मस्सीतखानी और रज़ाखानी बाज की परंपरा का पालन करते हैं।
- प्रमुख कलाकार: उस्ताद विलायत खाँ, उस्ताद इनायत खाँ, उस्ताद इमदाद खाँ।
(3) सेनिया सरोद घराना
- इस शाखा में सरोद वादन को विकसित किया गया।
- सेनिया सरोद घराने में मींड, गमक और बोलतान का विशेष उपयोग किया जाता है।
- प्रमुख कलाकार: उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ, उस्ताद अमजद अली खाँ।
3. सेनिया घराने की विशेषताएँ
(1) रागों की शुद्धता और परंपरागत शैली
- सेनिया घराने के कलाकार रागों की शुद्धता और प्राचीन गायकी शैली को बनाए रखते हैं।
- इसमें रागों की विस्तृत व्याख्या की जाती है।
(2) ध्रुपद और खयाल में गहराई
- इस घराने में ध्रुपद और खयाल दोनों ही शैलियों का समावेश मिलता है।
- हालांकि, सेनिया घराने का मुख्य योगदान वाद्य संगीत में अधिक रहा है।
(3) वाद्ययंत्रों में उच्च तकनीकी दक्षता
- सेनिया घराने के कलाकारों ने सितार, सरोद और सुरबहार जैसे वाद्ययंत्रों में क्रांतिकारी बदलाव किए।
- इस घराने की परंपरा में मींड, गमक, जटिल तानों और गतों का प्रयोग किया जाता है।
(4) “मस्सीतखानी” और “रज़ाखानी बाज” की परंपरा
- सेनिया घराने में सितार और सरोद वादन की दो मुख्य शैलियाँ विकसित हुईं:
- मस्सीतखानी बाज – धीमी गति में बजाई जाने वाली शैली।
- रज़ाखानी बाज – तीव्र गति में बजाई जाने वाली शैली।
(5) तानसेन की परंपरा से संबंध
- सेनिया घराने के कलाकार खुद को तानसेन की परंपरा का उत्तराधिकारी मानते हैं और उनकी शैली में वही गहराई और माधुर्य देखने को मिलता है।
4. सेनिया घराने के प्रमुख कलाकार
(1) तानसेन
- सेनिया घराने के संस्थापक और भारत के सबसे महान संगीतज्ञ।
- इन्होंने ध्रुपद गायकी और हिंदुस्तानी संगीत को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
(2) उस्ताद बहादुर खाँ
- सेनिया ध्रुपद परंपरा के महान गायक।
- इन्होंने ध्रुपद को विस्तृत रूप दिया और उसे आगे बढ़ाया।
(3) उस्ताद विलायत खाँ
- सेनिया सितार घराने के प्रसिद्ध वादक।
- इन्होंने सितार वादन में कई नए प्रयोग किए और इसे वैश्विक मंच पर पहुँचाया।
(4) उस्ताद अमजद अली खाँ
- सेनिया सरोद घराने के प्रमुख कलाकार।
- इन्होंने सरोद वादन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया।
5. सेनिया घराने का योगदान
- भारत के संगीत में सबसे पुरानी और समृद्ध परंपराओं में से एक।
- ध्रुपद, खयाल और वाद्य संगीत को समान रूप से विकसित किया।
- सितार, सरोद और अन्य वाद्ययंत्रों की नई तकनीकों को जन्म दिया।
- तानसेन की परंपरा को आगे बढ़ाकर हिंदुस्तानी संगीत को एक नई ऊँचाई दी।
- गंभीर और शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों की रुचि को बनाए रखा।
6. निष्कर्ष
सेनिया घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली घरानों में से एक है। इसकी परंपरा तानसेन से शुरू होकर आज भी जीवित है। इस घराने के कलाकारों ने भारतीय संगीत को वैश्विक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।