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संगीत में वर्ण क्या होता है?

यद्यपि वर्ण के कई अर्थ हैं जैसे अक्षर, रंग, जाति, श्रेणी आदि परन्तु संगीत में इसका अर्थ गायन और वादन की विभिन्न क्रियाओं से है –
‘गान क्रियोच्यते वर्ण: ‘
क्रिया से तात्पर्य गायन में स्वरों के विभिन्न चलन अथवा गति से है। इस क्रिया के आधार पर वर्ण कुल चार कहे गए हैं।

स्थायी वर्ण -

स्थायी का अर्थ है स्थिर होना । जब एक ही स्वर का निरंतर अथवा एक से अधिक बार उच्चारण किया जाता है तो उसे स्थायी वर्ण कहते हैं जैसे – स…., रे…. अथवा ससस, रेरेरे, गगग इत्यादि ।

आरोही वर्ण -

नीचे के स्वरों से ऊपर के स्वरों की ओर गमन करने को अर्थात स्वरों के चढ़ते क्रम को आरोही वर्ण कहते हैं जैसे स रे ग म प ध अथवा स ग म ध । इसमें प्रत्येक स्वर का प्रयोग होना अनिवार्य नहीं । राग में प्रयुक्त स्वरों के अनुसार स्वरों का क्रमभंग भी हो सकता है परन्तु प्रयोग विधि आरोहात्मक होनी चाहिये।

अवरोही वर्ण -

स्वरों के उतरते क्रम को अर्थात ऊपर के स्वरों से नीचे के स्वरों का प्रयोग करने की विधि को अवरोही वर्ण कहते हैं। आरोही वर्ण के समान इसमें भी समस्त स्वरों का प्रयोग अनिवार्य नहीं है । राग के अनुसार उनमें कुछ स्वर वर्जित भी हो सकते हैं जैसे सं नि प म ग ।

संचारी वर्ण -

स्थायी आरोही तथा अवरोही वर्णों के मिश्रण को संचारी वर्ण कहते हैं अर्थात उपरोक्त तीन वर्णों को मिलाने से संचारी वर्ण की उत्पत्ति होती है जैसे- सा रे ग प , ध ग प, ग प ध सां, सां सां सां, ध ध ध प, ग प ध प, ग रे सा।