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बंदिश भारतीय शास्त्रीय संगीत में रागों के आधार पर रचित एक निश्चित रचना (composition) होती है, जिसे एक विशेष ताल और लय में प्रस्तुत किया जाता है। यह किसी भी राग का एक मूलभूत ढाँचा होता है, जिसके माध्यम से गायक या वादक उस राग की प्रस्तुति करता है।

बंदिश की विशेषताएँ

  1. राग पर आधारित – बंदिश हमेशा किसी न किसी राग पर आधारित होती है और उसके स्वरूप को दर्शाती है।
  2. तालबद्ध रचना – इसे किसी निश्चित ताल (जैसे तीनताल, झपताल, रूपक, आदि) में बाँधा जाता है।
  3. शब्द और लय का समावेश – बंदिश में एक निश्चित गीतात्मक पाठ (lyrics) होता है, जो आमतौर पर हिंदी, ब्रजभाषा, संस्कृत, या अन्य भाषाओं में होता है।
  4. स्थायी और अंतरा – अधिकतर बंदिशों में दो प्रमुख भाग होते हैं:
    • स्थायी – जो प्रारंभिक भाग होता है और अधिक बार दोहराया जाता है।
    • अंतरा – जो स्थायी के बाद आता है और उसे विस्तार देता है।
  5. गायकी और वादन में समान उपयोग – बंदिशें केवल गायन में ही नहीं, बल्कि वाद्य संगीत में भी प्रयुक्त होती हैं, जहाँ उन्हें “गत” (composition in instrumental music) कहा जाता है।

बंदिश के प्रकार

  1. बड़ी बंदिश – धीमी गति में गाई जाती है, जिसे “विलंबित ख्याल” भी कहते हैं।
  2. छोटी बंदिश – तेज गति में गाई जाती है, जिसे “द्रुत ख्याल” भी कहते हैं।
  3. तराना – बंदिश का एक विशेष प्रकार, जिसमें “नादिर दानी”, “टॉम”, “दर” जैसे अर्थहीन लेकिन तालबद्ध शब्दों का प्रयोग होता है।
  4. ठुमरी और भजन बंदिश – कुछ बंदिशें ठुमरी, भजन या अन्य शैलियों में भी होती हैं, जिनमें भावनात्मक अभिव्यक्ति प्रमुख होती है।

उदाहरण

राग यमन में एक प्रसिद्ध बंदिश:
“ए री अली पिया बिन”
(ताल: तीनताल, लय: मध्य)

इस प्रकार, बंदिश शास्त्रीय संगीत का आधारभूत तत्व होती है और यह राग को समझने तथा प्रस्तुत करने के लिए एक मजबूत संरचना प्रदान करती है।

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