रूपक ताल भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक प्रसिद्ध ताल है, जिसमें 7 मात्राएँ होती हैं। यह ताल शास्त्रीय संगीत, खासकर ठुमरी और दादरा गायन में उपयोग होता है। रूपक ताल की संरचना जटिल और आकर्षक होती है, और इसे संगीत और नृत्य दोनों में प्रमुख रूप से इस्तेमाल किया जाता है।
रूपक ताल की विशेषताएँ:
- मात्राएँ (Matra): 7
- विभाग (Vibhag): 3 भाग (3-2-2)
- तालियाँ (Tali): 1, 4
- खाली (Khali): कोई खाली नहीं होता।
- लय: रूपक ताल सामान्यतः मध्यम और द्रुत लयों में बजाया और गाया जाता है।
रूपक ताल के बोल:
धा धिन | धिन ता | ता तिन
रूपक ताल की संरचना:
सम (1) | धा | धिन |
---|---|---|
ताली (4) | धिन | ता |
ताली (6) | ता | तिन |
रूपक ताल का विभाजन:
- पहला भाग (3 मात्राएँ): धा धिन
- दूसरा भाग (2 मात्राएँ): धिन ता
- तीसरा भाग (2 मात्राएँ): ता तिन
संगीत में रूपक ताल का उपयोग:
- गायन: रूपक ताल का उपयोग विशेष रूप से ठुमरी, दादरा, और अन्य शास्त्रीय गायन शैलियों में किया जाता है।
- वादन: यह ताल तबला और अन्य वाद्य यंत्रों पर बजाया जाता है।
- नृत्य: रूपक ताल का उपयोग शास्त्रीय नृत्य में भी किया जाता है, खासकर कथक नृत्य में।
उदाहरण:
“धा धिन | धिन ता | ता तिन”
रूपक ताल की संरचना सरल होते हुए भी बहुत प्रभावशाली होती है, और इसका इस्तेमाल शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुतियों में व्यापक रूप से होता है।