भारतीय संगीत का इतिहास (प्राचीनकाल से मध्यकाल तक)
भारतीय संगीत का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसे तीन मुख्य कालखंडों में बाँटा जा सकता है:
- प्राचीन काल (वैदिक युग से 12वीं शताब्दी तक)
- मध्यकाल (13वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक)
- आधुनिक काल (18वीं शताब्दी से वर्तमान तक)
1. प्राचीन काल (वैदिक युग से 12वीं शताब्दी तक)
भारतीय संगीत की जड़ें वेदों में मिलती हैं, विशेष रूप से सामवेद में, जहाँ मंत्रों को विशिष्ट स्वरों में गाया जाता था। इस काल में संगीत मुख्य रूप से धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों और भजन-कीर्तन के लिए प्रयुक्त होता था।
प्रमुख ग्रंथ:
- सामवेद
- नाट्यशास्त्र
- दत्तिलम
- बृहद्देशी (मतंग मुनि द्वारा)
प्रमुख विशेषताएँ:
- सामवेद में स्वरबद्ध मंत्र (सामगान)
- गंधर्व संगीत (नृत्य, गीत और वाद्य का समन्वय)
- भरतमुनि का नाट्यशास्त्र (संगीत, नृत्य और नाटक का ग्रंथ)
- सात स्वर (सुर) – सा, रे, ग, म, प, ध, नी का प्रारंभ
- विभिन्न रागों का विकास
इस काल में संगीत धार्मिक था और मंदिरों में इसका विशेष स्थान था।
2. मध्यकाल (13वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक)
इस काल में हिंदुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत अलग-अलग धाराओं में विकसित हुए। अमीर खुसरो ने हिंदुस्तानी संगीत में कई नवाचार किए, जबकि दक्षिण भारत में त्यागराज, मुत्तुस्वामी दीक्षितर और श्यामा शास्त्री जैसे संगीतज्ञों ने कर्नाटकी संगीत को समृद्ध किया।
इस युग में दरबारी संगीत का विकास हुआ, जहाँ शाही संरक्षण में कई राग और ताल प्रणालियाँ विकसित हुईं।
प्रमुख संगीतज्ञ:
- अमीर खुसरो (ख्याल, तराना)
- स्वामी हरिदास (ध्रुपद)
- तानसेन (अकबर के दरबारी संगीतज्ञ)
- त्यागराज (कर्नाटकी संगीत)
मध्यकालीन भारतीय संगीत का स्वरूप हिंदू और मुस्लिम परंपराओं के मेल से विकसित हुआ। इस काल में हिंदुस्तानी और कर्नाटकी संगीत की धाराएँ अलग हुईं।
प्रमुख विशेषताएँ:
- अमीर खुसरो (13वीं शताब्दी) ने हिंदुस्तानी संगीत में कई नवाचार किए, जैसे कि कव्वाली और तराना।
- तानसेन (अकबर के नवरत्नों में से एक) ने ध्रुपद और नए रागों का विकास किया।
- संगीत में इस्लामिक प्रभाव – सूफी संगीत, ग़ज़ल और ख्याल शैली का विकास।
- कर्नाटकी संगीत दक्षिण भारत में प्रमुख हुआ, जिसमें पुरंदरदास, त्यागराज, मुत्तुस्वामी दीक्षितर जैसे संगीतज्ञों ने योगदान दिया।
इस काल में संगीत राजदरबारों और आम जनता दोनों में लोकप्रिय हुआ।
भारतीय संगीत की महत्वपूर्ण शब्दावली
भारतीय संगीत को समझने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण शब्दों को जानना आवश्यक है:
शब्द | अर्थ |
---|---|
राग | सुरों का विशिष्ट क्रम जो भावनाओं को व्यक्त करता है |
ताल | संगीत की लयबद्ध संरचना |
स्वर | सात सुर (सा, रे, ग, म, प, ध, नी) |
थाट | रागों के वर्गीकरण की प्रणाली |
गान शैली | गायन की विशेष शैली जैसे ध्रुपद, ख्याल, ठुमरी आदि |
सप्तक | स्वरों का समूह (मंद्र, मध्य और तार सप्तक) |
अलाप | राग का मुक्त प्रस्तुतीकरण |
तान | स्वर-संयोजन की तेज़ गति वाली रचनाएँ |
लय | संगीत का गति-पैटर्न (विलंबित, मध्य, द्रुत) |
भारतीय गायन शैलियाँ
1. हिंदुस्तानी संगीत (उत्तर भारत)
(केंद्र: उत्तर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश)
- ध्रुपद – प्राचीनतम गायन शैली, गंभीर और शुद्ध संगीत
- ख्याल – सबसे लोकप्रिय शैली, मधुरता और कल्पनाशीलता से भरपूर
- ठुमरी – श्रृंगार रस प्रधान, रोमांटिक भावनाओं पर आधारित
- तराना – तेज गति की रचना, जिसमें बोल निरर्थक होते हैं
- ग़ज़ल – शायरी आधारित गीत, रोमांस और दर्शन का मिश्रण
- भजन – भक्ति संगीत, ईश्वर की स्तुति के लिए गाया जाता है
2. कर्नाटकी संगीत (दक्षिण भारत)
(केंद्र: तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल)
- कीर्तन – भक्ति रस से भरपूर संगीत
- वर्णम – किसी राग का परिचय कराने के लिए गाया जाने वाला प्रारंभिक गीत
- कृति – भक्ति और भावनात्मक गीत, कर्नाटकी संगीत की प्रमुख शैली
- पदं – शृंगार रस प्रधान गायन
निष्कर्ष
भारतीय संगीत का इतिहास बहुत समृद्ध और विस्तृत है। यह प्राचीन काल में वैदिक मंत्रों से शुरू हुआ, मध्यकाल में दरबारी और सूफी संगीत के रूप में विकसित हुआ, और आज भी आधुनिक युग में नए रूपों में जीवंत बना हुआ है।