द्रमण ताल भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक विशिष्ट ताल है, जिसमें 11 मात्राएँ होती हैं। यह ताल अपनी असामान्य मात्राओं और लय संरचना के कारण विशेष रूप से जटिल और आकर्षक माना जाता है। द्रमण ताल का उपयोग प्रायः वादन और गायन में किया जाता है, जहाँ गहरी लयात्मकता की आवश्यकता होती है।
द्रमण ताल की विशेषताएँ:
- मात्राएँ (Matra): 11
- विभाग (Vibhag): 4 भाग (4-2-3-2)
- तालियाँ (Tali): 1, 5, 8
- खाली (Khali): 10वें मात्रा पर
- लय: द्रमण ताल को प्रायः मध्य और विलंबित लय में बजाया जाता है।
द्रमण ताल के बोल:
धा धा ता ता | धिन ना | ता धा धा | ता धिन
द्रमण ताल की संरचना:
सम (1) | धा | धा | ता | ता |
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ताली (5) | धिन | ना | ||
ताली (8) | ता | धा | धा | |
खाली (10) | ता | धिन |
द्रमण ताल का विभाजन:
- पहला भाग (4 मात्राएँ): धा धा ता ता
- दूसरा भाग (2 मात्राएँ): धिन ना
- तीसरा भाग (3 मात्राएँ): ता धा धा
- चौथा भाग (2 मात्राएँ): ता धिन
संगीत में द्रमण ताल का उपयोग:
- गायन: यह ताल खयाल, ध्रुपद और धमार जैसी विधाओं में प्रयुक्त होता है।
- वादन: इसे तबला, पखावज और अन्य ताल वाद्यों पर बजाया जाता है।
- नृत्य: द्रमण ताल का उपयोग कथक और अन्य शास्त्रीय नृत्य में भी होता है।
द्रमण ताल की जटिल संरचना और अद्वितीय लय इसे शास्त्रीय संगीत के पारखियों के लिए विशेष रूप से रुचिकर बनाती है।