दिल्ली घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और तबला वादन का एक प्रमुख घराना है। यह तबला वादन के सबसे पुराने घरानों में से एक माना जाता है। इस घराने की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई और यह भारत के अन्य तबला घरानों जैसे लखनऊ, अजराड़ा, पंजाब, फर्रुखाबाद और बनारस घरानों पर गहरा प्रभाव डालने वाला घराना रहा है।
1. इतिहास और स्थापना
- दिल्ली घराने की स्थापना उस्ताद सिद्दार खान धाधी ने की थी, जिन्हें तबले की पारंपरिक बनावट और वादन की शैली को व्यवस्थित करने का श्रेय दिया जाता है।
- यह घराना तबले की क्लासिकल परंपरा का सबसे पुराना घराना माना जाता है।
- दिल्ली में मुगल दरबार में तबले की परंपरा को इस घराने ने मजबूती दी।
2. दिल्ली घराने की विशेषताएँ
(1) नाज़ुक और साफ़ वादन शैली
- इस घराने की तबला वादन शैली बहुत साफ-सुथरी, कोमल और परिष्कृत होती है।
- इस घराने की बोलों में स्पष्टता और लयकारी प्रमुख होती है।
(2) खुले और बंद बोलों का संतुलन
- दिल्ली घराने में खुले (खुली आवाज़ वाले) और बंद (मृदु) बोलों का संतुलन बहुत सुंदर तरीके से किया जाता है।
- इस घराने में तबले के प्रत्येक बोल को स्पष्ट रूप से बजाने पर जोर दिया जाता है।
(3) कायदा और रेला प्रधान शैली
- इस घराने में कायदों (ताल संरचनाओं) और रेलों (तेज गति वाले बोलों) का विशेष महत्व है।
- इस घराने की तबला बनावट और ताल-विन्यास में एक विशेष संतुलन और नज़ाकत देखी जाती है।
(4) पायरेदार कायदे (Pyramid-Structured Kayda)
- दिल्ली घराने में “पायरेदार कायदा” का विशेष उपयोग होता है, जिसमें धीमी गति से तेज गति की ओर बढ़ते हुए बोल बजाए जाते हैं।
(5) लयकारी में उत्कृष्टता
- इस घराने के कलाकार तीनताल, झपताल, एकताल और रूपक ताल जैसे पारंपरिक तालों में निपुण होते हैं।
- यहाँ लयकारी बहुत संतुलित और गणितीय होती है।
3. दिल्ली घराने के प्रमुख तबला उस्ताद
(1) उस्ताद सिद्दार खान धाधी
- दिल्ली घराने के संस्थापक माने जाते हैं।
- इन्होंने तबले की बनावट और वादन को एक नई दिशा दी।
(2) उस्ताद गामू खान
- इन्होंने इस घराने की परंपरा को आगे बढ़ाया और कई शिष्यों को प्रशिक्षित किया।
(3) उस्ताद अशिक अली खान
- ये भी दिल्ली घराने के प्रमुख तबला उस्तादों में से एक थे।
(4) उस्ताद चांदी खान और उस्ताद कबीर खान
- इन्होंने तबले की कई नई बंदिशें और कायदे तैयार किए।
(5) उस्ताद लताфат हुसैन खान और उस्ताद इनाम अली खान
- इन्होंने दिल्ली घराने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
4. दिल्ली घराने का योगदान
- तबला वादन की सबसे पुरानी और व्यवस्थित परंपरा विकसित की।
- खुले और बंद बोलों का संतुलित प्रयोग प्रस्तुत किया।
- खयाल और ध्रुपद गायकी में तबले की संगत का आधार बनाया।
- अन्य तबला घरानों (लखनऊ, पंजाब, बनारस आदि) पर गहरा प्रभाव डाला।
- भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में योगदान दिया।
5. निष्कर्ष
दिल्ली घराना तबला वादन की सबसे पुरानी और समृद्ध परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी विशेषता है साफ और संतुलित वादन, जिसमें कायदा, रेला और लयकारी का अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है। आज भी इस घराने की परंपरा को कई प्रसिद्ध तबला वादक आगे बढ़ा रहे हैं।