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परिभाषा

ताल भारतीय संगीत का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो किसी भी रचना की लयबद्ध संरचना को निर्धारित करता है। यह संगीत के स्वरों और शब्दों को एक निश्चित गति और अनुशासन में बाँधने का कार्य करता है। ताल की गिनती और उसके विभाजन (खंड) संगीत को एक सुसंगठित रूप देते हैं।

ताल की विशेषताएँ

  1. समय और गणना – ताल एक निश्चित मात्रा (मात्राओं) का चक्र होता है, जिसमें बीट्स (मात्राएँ) एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित होती हैं।
  2. तालचक्र – प्रत्येक ताल में मात्राओं की एक निश्चित संख्या होती है, जो बार-बार दोहराई जाती है।
  3. विभाजन (विभाग) – ताल को कई भागों में बाँटा जाता है, जिससे गायक और वादक को समझने में आसानी होती है।
  4. सम और खली – ताल की शुरुआत को सम कहा जाता है, और खली वह स्थान होता है जहाँ ताल का हल्का प्रभाव होता है।
  5. बोल और ताली-खाली – प्रत्येक ताल में अलग-अलग बोल होते हैं, और इनमें कुछ स्थानों पर तालियाँ (मजबूत बीट्स) और कुछ स्थानों पर खाली (हल्की बीट्स) दी जाती हैं।

प्रमुख तालें और उनका स्वरूप

भारतीय शास्त्रीय संगीत में विभिन्न प्रकार की तालें प्रयोग की जाती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख तालें इस प्रकार हैं:

ताल का नाम मात्राएँ बोल (थेका)
तीनताल 16 धा धिं धिं धा, धा धिं धिं धा, धा तिं तिं ता, ता धिं धिं धा
झपताल 10 धिं न, धिं धिं न, ता न, धिं धिं न
एकताल 12 धिं धिं, धा गे तिर की टा, तुन न, का ता धिं धिं धा गे तिर की टा, धा तुन न
रूपक ताल 7 तिं तिं ना, धिं ना, धिं ना
दादरा ताल 6 धा धिं ना, धा तिं ना
केहरवा ताल 8 धा गें ना, तिर की टा

ताल का महत्व

  1. गायन में अनुशासन लाना – ताल संगीत को एक निश्चित लय में बाँधकर उसे व्यवस्थित और सुगठित बनाती है।
  2. वाद्य संगीत में प्रयोग – तबला, पखावज, मृदंग, ढोलक, मंजीरा आदि ताल वाद्ययंत्रों में ताल की प्रमुख भूमिका होती है।
  3. नृत्य में ताल का योगदान – कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी जैसे शास्त्रीय नृत्य ताल के बिना अधूरे हैं।
  4. संवाद और संगति का आधार – गायक और वादक के बीच ताल सामंजस्य स्थापित करने का कार्य करती है।

ताल भारतीय संगीत का रीढ़ मानी जाती है, क्योंकि यह संगीत में संतुलन और प्रवाह बनाए रखने में मदद करती है।

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