ताल किसे कहते हैं?
ताल भारतीय शास्त्रीय संगीत में समय (लय) और गति को मापने का एक तरीका है। यह संगीत के किसी भी रचना या प्रस्तुति में संगत लयबद्धता और अनुशासन बनाए रखने में मदद करता है। ताल का उपयोग गाने, वादन और नृत्य के दौरान लय और गति को नियमित करने के लिए किया जाता है।
ताल के मुख्य घटक:
- मात्रा (Matra):
ताल की सबसे छोटी इकाई को मात्रा कहते हैं। यह एक प्रकार से ताल की गिनती होती है।
उदाहरण: त्रिताल में 16 मात्राएँ होती हैं। - सम (Sam):
ताल का पहला और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जहाँ गायक या वादक अक्सर अपनी प्रस्तुति की शुरुआत करते हैं। सम पर खास जोर दिया जाता है। - खाली (Khali):
यह ताल का वह भाग है जिसमें जोर नहीं दिया जाता। इसे ‘ताली’ के विपरीत माना जाता है और इसे हाथ की हथेली को उलटा करके या किसी विशिष्ट संकेत से दिखाया जाता है। - ताली (Tali):
ताल के कुछ हिस्सों में ताली बजाई जाती है। यह ताल के विभाजन को दर्शाने का एक तरीका है। - विभाग (Vibhag):
ताल को विभिन्न भागों (खंडों) में बाँटा जाता है, जिन्हें विभाग कहते हैं। प्रत्येक विभाग में बराबर मात्राएँ होती हैं। - लय (Laya):
ताल को तेज़, मध्यम और धीमी गति में गाया या बजाया जाता है।- विलंबित लय: धीमी गति।
- मध्यम लय: मध्यम गति।
- द्रुत लय: तेज़ गति।
उदाहरण: त्रिताल
- मात्राएँ: 16
- विभाजन: 4-4-4-4
- ताली: 1, 5, 13
- खाली: 9
- बोल: धा धा तिन तिन | ता ता धिन धिन | धा धा तिन तिन | ता ता धिन धिन
ताल संगीत और नृत्य का एक अनिवार्य हिस्सा है और इसकी मदद से प्रस्तुति अधिक सुगठित और आकर्षक बनती है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में तालों के कई नाम हैं, जो उनकी मात्राओं, संरचना और उपयोग के आधार पर पहचाने जाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख तालों के नाम क्रमशः प्रस्तुत हैं:
तालों के नाम और उनकी मात्राएँ:
- तीनताल (त्रिताल): 16 मात्रा
- एकताल: 12 मात्रा
- झपताल: 10 मात्रा
- दादरा ताल: 6 मात्रा
- केहरवा ताल: 8 मात्रा
- रूपक ताल: 7 मात्रा
- आड़ा चौताल: 14 मात्रा
- चौताल: 12 मात्रा
- सुलफाक्ता ताल: 10 मात्रा
- झूमरा ताल: 14 मात्रा
- तिव्रा ताल: 7 मात्रा
- द्रमण ताल: 11 मात्रा
- सुरफंक ताल: 10 मात्रा
- पंचम स्वर ताल: 15 मात्रा
- लक्षण ताल: 18 मात्रा
- धमार ताल: 14 मात्रा
- दीपचंदी ताल: 14 मात्रा
- एकविलंबित ताल: 9 मात्रा
- मत्त ताल: 9 मात्रा
- जाता ताल: 13 मात्रा
तालों का महत्व:
प्रत्येक ताल की संरचना (ताली, खाली, विभाजन) अलग-अलग होती है, और ये शास्त्रीय संगीत, वादन और नृत्य में विभिन्न भाव और लय का निर्माण करती हैं। ताल के बिना संगीत अधूरा माना जाता है।