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आगरा घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रमुख और प्राचीन घरानों में से एक है। यह घराना अपनी मजबूत लयकारी, बोल-आलाप, और दमदार आवाज़ के लिए प्रसिद्ध है। इसकी स्थापना हाजी सुजान खाँ द्वारा की गई थी, लेकिन इसे मुख्य पहचान उस्ताद घग्गे खाँ और उस्ताद फैयाज़ खाँ के योगदान से मिली।


1. इतिहास और स्थापना

आगरा घराने की जड़ें ध्रुपद और धमार गायकी से जुड़ी हुई हैं। इसकी स्थापना हाजी सुजान खाँ ने की थी, जो पहले ध्रुपद गायक थे, लेकिन बाद में खयाल गायकी को अपनाया और इसे लोकप्रिय बनाया।

इस घराने को आगे बढ़ाने में उस्ताद घग्गे खाँ, उस्ताद नत्थन खाँ और उस्ताद फैयाज़ खाँ का विशेष योगदान रहा। इन्होंने इस घराने की विशिष्ट शैली को विकसित किया और उसे पूरे भारत में प्रसिद्ध किया।


2. आगरा घराने की विशेषताएँ

आगरा घराने की गायकी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं पर आधारित है:

(1) दमदार और गहरी आवाज़

(2) ध्रुपद की छाप

(3) बोल-आलाप और बोल-तान

(4) ताल और लयकारी में निपुणता

(5) मध्यम और द्रुत लय में विशेष ध्यान

(6) तानों की विविधता


3. प्रमुख कलाकार और गुरु-शिष्य परंपरा

आगरा घराने से कई महान गायक जुड़े रहे हैं, जिन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाया:

(1) उस्ताद घग्गे खाँ

(2) उस्ताद नत्थन खाँ

(3) उस्ताद फैयाज़ खाँ

(4) उस्ताद लताфат हुसैन खाँ

(5) पंडित दिनकर कायकिणी


4. आगरा घराने का योगदान

आगरा घराने ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को समृद्ध बनाने में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए:

  1. खयाल गायकी में बोल-आलाप और बोल-तान की परंपरा को मजबूत किया।
  2. ध्रुपद और खयाल का अनूठा संगम प्रस्तुत किया।
  3. लयकारी और ताल प्रयोग को विशेष रूप से विकसित किया।
  4. गायकी में ऊर्जा और दमदार प्रस्तुति को प्राथमिकता दी।

5. निष्कर्ष

आगरा घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इसकी गायकी में शक्ति, लयकारी, बोल-आलाप और ध्रुपद का अनूठा मेल देखने को मिलता है। उस्ताद फैयाज़ खाँ और अन्य महान गायकों के योगदान से यह घराना पूरे भारत में प्रसिद्ध हुआ और आज भी इसे आगे बढ़ाने का कार्य कई कलाकार कर रहे हैं।

 

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